निर्दोषता के अनेकों प्रमाण जो अदालत में प्रमाणित होने पर भी नजरंदाज किये गये..
मेडिकल रिपोर्ट
लड़की की मेडिकल रिपोर्ट बापू आशारामजी को आजीवन कारावास की सजा तथाकथित रेप और गैंगरेप में दी गयी है लेकिन लोकनायक अस्पताल, नई दिल्ली में आरोपकर्त्री की मेडिकल रिपोर्ट यह दर्शाती है कि रेप तो छोड़ो, किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ तक नहीं हुई, रिपोर्ट पूर्णतः नॉर्मल पायी गयी ।
Quick Points from Medical Report
  • No physical assault
  • No erythema
  • No bite marks
  • No swelling
  • No abrasion
  • No penetration
  • No loss of consciousness
  • Hymen intact
बिना कुटिया में गये लड़की ने कैसे दी अंदर की जानकारी..
लड़की ने तथाकथित घटनास्थल (कुटिया) के अंदर का वर्णन न तो FIR में किया है न NGO के सामने हुए बयान में और न ही मैजिस्ट्रेट के सामने हुए बयान में...! यह वर्णन सबसे पहले आता है पुलिस के सामने हुए बयान में । अर्थात् लड़की को पुलिस को दिये गये बयान से पहले कुटिया के अंदर की जानकारी नहीं थी । अब सवाल उठता है कि उसे यह जानकारी कैसे मिली ?
लड़की के पुलिस स्टेटमेंट होने से 1 दिन पहले इस केस के तत्कालीन DCP अजय पाल लाम्बा अन्य पुलिसकर्मियों के साथ कुटिया पर गये थे और उन्होंने अपने मोबाइल से कुटिया के अंदर व बाहर की विडियोग्राफी की थी। यह तथ्य जोधपुर सूरसागर पुलिस थाने के रोजनामचे से प्रगट होता है ।
बापूजी के वकीलों द्वारा यह रोजनामचा कोर्ट के सामने रखते हुए यह दलील की गयी कि लड़की के पुलिस स्टेटमेंट होने से पहले पुलिस ने वहाँ जाकर कुटिया को देखा है जिससे स्पष्ट है कि पुलिस ने ही लड़की को कुटिया का विडियो दिखाया है और इसका प्रमाण है 22 अगस्त 2013 के दैनिक भास्कर में फ्रंट पेज पर छपा हुआ पुलिस कर्मचारी का कुटिया के अंदर का फोटो ।
लेकिन जोधपुर की विशेष अदालत ने जजमेंट में इस तथ्य पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि, ‘बचाव पक्ष के तर्कों में कोई सार नहीं है । यह सही है कि सूरसागर थाने का जाब्ता एवं थानाधिकारी मदन बेनीवाल मौके पर गये थे लेकिन उन्होंने घटनास्थल की विडियोग्राफी की हो या घटनास्थल का अवलोकन किया हो, ऐसा रोजनामचे से प्रकट नहीं होता है ।’
यह वही सबूत है जिसे सेशन कोर्ट ने "सबूत नहीं हैं" कहते हुए जजमेंट में ठुकराया था । अब इस किताब से ये सबूत सामने आकर खड़ा हो गया ।
इन सभी तथ्यों को देखते हुए जोधपुर हाईकोर्ट अजय पाल लाम्बा को कोर्ट में उपस्थित होने हेतु सम्मन भेजती है । अजय पाल लाम्बा बीमारी व अन्य कई कारण बताते हुए कोर्ट में कई तारीखों पर उपस्थित नहीं होते और उसी दौरान अचानक हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली जाती है ।
सरकारी वकील सुप्रीम कोर्ट में यह दलील करता है कि इस किताब में डिस्क्लेमर है और यह नाटकीय रूप से लिखी गयी है इसलिए इसे सबूत के तौर पर न लिया जाए । सुप्रीम कोर्ट यह दलील मानकर हाईकोर्ट के निर्णय को ठुकरा देती है । एक ही किताब को एक तरफ ठोस सबूतों का संकलन और दूसरी तरफ काल्पनिक बताते हैं स्वयं इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर अजय पाल लाम्बा और आश्चर्य ! उनके दोनों विपरीत बयान दोनों कोर्ट में मान्य किये जाते हैं !
न्याय कहाँ मिलेगा ?
अहमदाबाद केस
कल्पित घटना
जोधपुर में झूठी FIR दर्ज होने के मात्र दो महीने बाद अक्टूबर 2013 में सूरत की दो बहनों ने आशारामजी बापू और उनके बेटे नारायण साँईं के खिलाफ 12 वर्ष पूर्व की कल्पित कहानी बताकर प्राथमिकी दर्ज कराई थी । बड़ी बहन ने बापूजी पर 2001 की और छोटी बहन ने नारायण साँईं पर 2002 की तथाकथित घटना बताते हुये बलात्कार का आरोप लगाया है । इतने लम्बे अंतराल तक FIR दर्ज न कराने का कारण पूछने पर महिलाओं द्वारा कोई स्पष्ट एवं संतुष्टिकारक उत्तर नहीं दिया जाता लेकिन इस लंबे विलम्ब के बावजूद बिना किसी संयोगिक प्रमाण के केवल महिलाओं के विरोधाभासी बयानों के आधार पर आशारामजी बापू और नारायण साँईं को आजीवन कारावास की सजा सुना दी जाती है ।
विचारणीय
बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू ने तथाकथित दुष्कर्म किया लेकिन छोटी बहन 2002 में नारायण साँईं के आश्रम में रहने के लिए आ जाती है ।
अगर किसी महिला के साथ दुष्कर्म होता है तो क्या वह अपनी सगी बहन को बाद में आश्रम में रहने के लिए जाने दे सकती है ? छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक आश्रम में रही और 2010 में दोनों बहनों ने शादी कर ली । शादी के बाद भी जनवरी 2013 तक छोटी बहन अपने पति के साथ नारायण साँईं के सत्संग में आती थी जिसके फ़ोटो भी कोर्ट के रिकॉर्ड पर हैं । बड़ी बहन भी आश्रम छोड़ने के कुछ वर्षों बाद तक बापूजी के सत्संग में आती थी ।
आरोपों की कड़ियाँ कितनी कमजोर ...
अब सवाल उठता है कि :
जब ये बहनें आश्रम में रहती थीं, उस समय बड़ी बहन सन 2000-2001 से वक्ता थी और देशभर में जगह-जगह पर सत्संग व प्रचार की सेवा में जाती थी । वह स्वयं प्रचार समूह की मुखिया थी और पूरे महीने में केवल 7 या 8 दिन के लिए ही अहमदाबाद महिला आश्रम में आती थी तो..
1. अगर इसके साथ दुष्कर्म हुआ होता तो क्या सालों तक यह महिला आशारामजी बापू का महिमा मंडन करती रहती ?
2. जब यह महिला प्रचार की सेवा में देशभर में घूमती थी तब अगर इसके साथ तथाकथित दुष्कर्म होता था तो क्यों यह बार-बार वापस आश्रम आ जाती थी ?
3. तथाकथित दुष्कर्म के बाद भी क्यों ये बहनें सालों तक आश्रम में रहीं ?
4. आश्रम छोड़कर जाने के बाद भी क्यों ये दोनों बहनें आशारामजी बापू और नारायण साँईं के सत्संग में आती रहीं ?
5. क्यों इन बहनों द्वारा 12 साल तक FIR दर्ज नहीं करवायी गयी ? 2003 में महिला को टीबी होने पर वह अपने घर गयी थी, थोड़े समय तक घर पर रुकी, फिर वापस वह आश्रम क्यों आ गयी थी ? (यह तथ्य कोर्ट के रिकॉर्ड पर है )
महिला बयान बदलना चाहती थी
बयानों में विरोधाभास
1.आरोपकर्त्री का कहना है कि वह आशारामजी बापू को पहली बार जन्माष्टमी कार्यक्रम 1996 में सूरत आश्रम में मिली थी और उसी समय से बापूजी तथा अन्य आरोपियों ने मिलकर एक षड्यन्त्र के तहत उसको वक्ता बनाने की बात करके फँसाना चाहा था ।
2. आरोपकर्त्री का कहना है कि 1997 में होली शिविर में आशारामजी बापू को वह सूरत आश्रम में मिली तो बापूजी ने कहा कि ‘तू वही लड़की है न जो मुझे मिली थी, जा जाकर अहमदाबाद में अनुष्ठान कर ।’ तब शिकायतकर्त्री महिला ने कहा था कि उसे दसवीं की परीक्षा देनी है ।
3. आरोपकर्त्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि “2007 में मैंने निर्णय लिया कि मुझे अब आश्रम में रहना नहीं है तो मेरी जो मित्र थी उस मित्र से मैंने बात करी और उस मित्र की मदद से मैं आश्रम से भागकर सूरत में अपने माता-पिता के घर आ गयी ।”
बयानों में विरोधाभास
1.आरोपकर्त्री का कहना है कि वह आशारामजी बापू को पहली बार जन्माष्टमी कार्यक्रम 1996 में सूरत आश्रम में मिली थी और उसी समय से बापूजी तथा अन्य आरोपियों ने मिलकर एक षड्यन्त्र के तहत उसको वक्ता बनाने की बात करके फँसाना चाहा था ।
2. आरोपकर्त्री का कहना है कि 1997 में होली शिविर में आशारामजी बापू को वह सूरत आश्रम में मिली तो बापूजी ने कहा कि ‘तू वही लड़की है न जो मुझे मिली थी, जा जाकर अहमदाबाद में अनुष्ठान कर ।’ तब शिकायतकर्त्री महिला ने कहा था कि उसे दसवीं की परीक्षा देनी है ।
3. आरोपकर्त्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि “2007 में मैंने निर्णय लिया कि मुझे अब आश्रम में रहना नहीं है तो मेरी जो मित्र थी उस मित्र से मैंने बात करी और उस मित्र की मदद से मैं आश्रम से भागकर सूरत में अपने माता-पिता के घर आ गयी ।”
क्या यह न्याय है ?
‘जिस केस में कोई भी प्रत्यक्ष साक्ष्य न हो उस केस में आरोपकर्त्री का बयान तभी सही माना जायेगा जब वह स्टर्लिंग विटनेस हो यानी उसके बयान में कहीं भी कोई विरोधाभास न हो ।’ ~सुप्रीम कोर्ट
लेकिन संत श्री आशारामजी बापू पर आरोप लगानेवाली महिलाओं के बयानों में कितना विरोधाभास है, यह समाज के सामने है ।
ऐसे विरोधाभासी बयानों के आधार पर बिना किसी सबूत के भारत के एक संत, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सनातन संस्कृति की सेवा में एवं देश-हित के कार्यों में समर्पित कर दिया, उनको आजीवन कारावास की सजा देना..
क्या यह न्याय है ?
न्याय का दोहरा मापदंड ..
केरल के बिशप फ्रेंको मुलक्कल
आरोप : नन के साथ 13 बार रेप करने का आरोप
बेल : 26 दिन तक जेल, उसके बाद बेल पर रहते हुए निर्दोष बरी
दीपक चौरसिया और अन्य पत्रकार
आरोप : आशारामजी बापू को बदनाम करने के लिए नाबालिग बच्ची के विडियो को तोड़-मरोड़कर दिखाया, POCSO के तहत मामला दर्ज, आज तक गिरफ्तारी नहीं
बेल : 26 दिन तक जेल, उसके बाद बेल पर रहते हुए निर्दोष बरी
तरुण तेजपाल
आरोप : आशारामजी बापू को बदनाम करने के लिए नाबालिग बच्ची के विडियो को तोड़-मरोड़कर दिखाया, POCSO के तहत मामला दर्ज, आज तक गिरफ्तारी नहीं
बेल : 26 दिन तक जेल, उसके बाद बेल पर रहते हुए निर्दोष बरी
क्या संत-समाज सुरक्षित है ?
पालघर साधु
महाराष्ट्र के पालघर में कथित स्थानीय अपराधियों द्वारा पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में साधुओं की नृशंस हत्या कर दी गयी ।
जगद्गुरु कृपालुजी महाराज
आरोप : उनकी एक शिष्या द्वारा बलात्कार का आरोप
परिणाम : आरोप निराधार साबित हए
जगद्गुरु कृपालुजी महाराज
आरोप : उनकी एक शिष्या द्वारा बलात्कार का आरोप
परिणाम : आरोप निराधार साबित हए
जगद्गुरु कृपालुजी महाराज
आरोप : उनकी एक शिष्या द्वारा बलात्कार का आरोप
परिणाम : आरोप निराधार साबित हए
शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वतीजी
आरोप : उनकी एक शिष्या द्वारा बलात्कार का आरोप
परिणाम : आरोप निराधार साबित हए
स्वामी असीमानंदजी
आरोप : उनकी एक शिष्या द्वारा बलात्कार का आरोप
परिणाम : आरोप निराधार साबित हए
मानवाधिकारों का सतत अतिक्रमण
पिछले 11.5 से अधिक वर्षों (जेल परिहारानुसार) से संत श्री आशारामजी बापू जेल में हैं । उनको न बेल दी जाती है न पैरोल न फरलो जबकि सजा का चौथाई हिस्सा पूरा करने के बाद कानून द्वारा पैरोल पर बाहर आने का प्रावधान है लेकिन यह प्रावधान बापूजी के लिए लागू नहीं किया जाता । कोर्ट द्वारा हर बार 86 वर्षीय वयोवृद्ध संत की अर्जी को नामंजूर किया जाता है । 2013, जब से बापूजी जेल में हैं उनका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन बिगड़ता चला जा रहा है ।
2013 से - ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया
2015 से - प्रोस्टेटिक हाइपरप्लासिया, घुटने के आर्थ्राइटिस ग्रेड 4, सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस, हाइपोथायरायडिज्म
2016 से - प्रोस्टेटाइटिस, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, कार्पल टनल सिंड्रोम
2021 फरवरी - एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम, एनीमिया, सिस्टाइटिस, माइल्ड हेपेटिक स्टीटोसिस मई - COVID, आँतों से रक्तस्राव, AIIMS और MDM में एडमिट जून - हाइड्रोनेफ्रोसिस, हाइपोनेट्रिमिया नवम्बर - लिवर के एंजाइम का बढ़ना, पीलिया, किडनी की कार्यक्षमता में क्षति, पोस्ट COVID कोम्प्लीकेशन डिस्टेंडेड युरीनरी ब्लैडर, प्रोस्टेटोमेगाली, हेपटोमेगाली ।
2022 - AIIMS ने प्रोस्टेट की सर्जरी (prostatectomy) की सलाह दी ।
2023 - हार्ट अटैक, कोरोनरी आर्टरी डिसीज, उच्च रक्तचाप, खून की कमी आयरन और विटामिन बी 12 की कमी
जनवरी 2024
AIIMS में करायी गयी एंजियोग्राफी रिपोर्ट के अनुसार उनके हृदय में 3 गंभीर ( 99%, 90% और 85%) ब्लॉकेज हैं । Capsular Endoscopy रिपोर्ट के अनुसार छोटी आँत में अल्सर है जिसके कारण काफी रक्तस्राव हुआ । लगातार रक्तस्राव के कारण 7 बोतल के ऊपर खून चढ़ा लेकिन हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य नहीं हुआ । वर्ष 2021 में भी कोरोना के गंभीर दुष्परिणामों से ICU में कई दिनों तक जूझने के बाद भी उन्हें बेल देने की अपेक्षा जेल में वापस भेज दिया गया था जो जेल उस समय covid इन्फेक्शन का हॉटस्पॉट बनी हुई थी ।
इतनी बीमारियाँ होने के बावजूद भी बापूजी द्वारा अपनी इच्छानुसार अपना इलाज कराने के लिए आज तक लगायी गयी सभी अर्जियाँ कोर्ट द्वारा खारिज कर दी गयी हैं । क्या ऐसी कोई न्यायनीति नहीं जो 11.5 से अधिक वर्षों (जेल परिहारानुसार) से कारागृह में बंद 86 वर्षीय निर्दोष संत श्री आशारामजी बापू को राहत दिला सके ?
संत श्री आशारामजी बापू की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में संचालित विश्वहितकारी प्रकल्प
“वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना से ओतप्रोत हृदय
पिछले 60 से अधिक वर्षों से सनातन वैदिक संस्कृति का शंखनाद करने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण व सामाजिक मूल्यों द्वारा समाज-निर्माण में सेवारत रहे हैं संत श्री आशारामजी बापू ।
विश्व धर्म संसद, शिकागो
हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजन्स (विश्व धर्म संसद), शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 को संत श्री आशारामजी बापू ने किया था ।
गौ रक्षण व संवर्धन
60 से अधिक छोटी एवं बड़ी गौशालाएँ, जहाँ 10, 000 से अधिक गायों का रक्षण व पालन-पोषण होता है ।
बाल संस्कार केंद्र, विद्यार्थी शिविर, योग व उच्च संस्कार कार्यक्रम
बापूजी की प्रेरणा से बच्चों में सुसंस्कार सिंचन हेतु देशभर में हजारों बाल संस्कार केंद्र नि:शुल्क चलाये जाते हैं, साथ ही विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षभर में सैंकड़ों विद्यार्थी शिविरों एवं हजारों योग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । इनमें हजारों-हजारों विद्यार्थी हिस्सा लेकर उन्नत होते हैं ।
विश्व धर्म संसद, शिकागो
हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजन्स (विश्व धर्म संसद), शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 को संत श्री आशारामजी बापू ने किया था ।
गौ रक्षण व संवर्धन
60 से अधिक छोटी एवं बड़ी गौशालाएँ, जहाँ 10, 000 से अधिक गायों का रक्षण व पालन-पोषण होता है ।
पर्यावरण सुरक्षा अभियान
पूज्य बापूजी कहते हैं : “अपने घरों, इलाकों में तुलसी, आँवला, पीपल, नीम और बरगद के वृक्ष लगें ऐसा प्रयत्न सभीको करना चाहिए । इनमें पीपल, आँवला व तुलसी अति हितकारी हैं । पीपल लगाने की आप वन विभाग को सलाह देना, उत्साह देना तो मैं समझूंगा आपने भगवान की भी सेवा की, समाज की भी सेवा की और मेरे पर बड़ा एहसान किया ।”
बाल संस्कार केंद्र, विद्यार्थी शिविर, योग व उच्च संस्कार कार्यक्रम
बापूजी की प्रेरणा से बच्चों में सुसंस्कार सिंचन हेतु देशभर में हजारों बाल संस्कार केंद्र नि:शुल्क चलाये जाते हैं, साथ ही विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षभर में सैंकड़ों विद्यार्थी शिविरों एवं हजारों योग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । इनमें हजारों-हजारों विद्यार्थी हिस्सा लेकर उन्नत होते हैं ।
विश्व धर्म संसद, शिकागो
हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजन्स (विश्व धर्म संसद), शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 को संत श्री आशारामजी बापू ने किया था ।
गौ रक्षण व संवर्धन
60 से अधिक छोटी एवं बड़ी गौशालाएँ, जहाँ 10, 000 से अधिक गायों का रक्षण व पालन-पोषण होता है ।
पर्यावरण सुरक्षा अभियान
पूज्य बापूजी कहते हैं : “अपने घरों, इलाकों में तुलसी, आँवला, पीपल, नीम और बरगद के वृक्ष लगें ऐसा प्रयत्न सभीको करना चाहिए । इनमें पीपल, आँवला व तुलसी अति हितकारी हैं । पीपल लगाने की आप वन विभाग को सलाह देना, उत्साह देना तो मैं समझूंगा आपने भगवान की भी सेवा की, समाज की भी सेवा की और मेरे पर बड़ा एहसान किया ।”
बाल संस्कार केंद्र, विद्यार्थी शिविर, योग व उच्च संस्कार कार्यक्रम
बापूजी की प्रेरणा से बच्चों में सुसंस्कार सिंचन हेतु देशभर में हजारों बाल संस्कार केंद्र नि:शुल्क चलाये जाते हैं, साथ ही विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षभर में सैंकड़ों विद्यार्थी शिविरों एवं हजारों योग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । इनमें हजारों-हजारों विद्यार्थी हिस्सा लेकर उन्नत होते हैं ।
विश्व धर्म संसद, शिकागो
हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने पार्लियामेंट ऑफ वर्ल्ड रिलीजन्स (विश्व धर्म संसद), शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 को संत श्री आशारामजी बापू ने किया था ।
बाल संस्कार केंद्र, विद्यार्थी शिविर, योग व उच्च संस्कार कार्यक्रम
बापूजी की प्रेरणा से बच्चों में सुसंस्कार सिंचन हेतु देशभर में हजारों बाल संस्कार केंद्र नि:शुल्क चलाये जाते हैं, साथ ही विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए वर्षभर में सैंकड़ों विद्यार्थी शिविरों एवं हजारों योग व उच्च संस्कार शिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । इनमें हजारों-हजारों विद्यार्थी हिस्सा लेकर उन्नत होते हैं ।
मैं पूज्य बापूजी का अभिनंदन करने आया हूँ... उनके आशीर्वचन सुनने आया हूँ । संत-महात्माओं के दर्शन तभी होते हैं, उनका सान्निध्य तभी मिलता है जब कोई पुण्य जागृत होता है । हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और जिसे हम लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापूजी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगा के उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं । बापूजी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिला, बड़ा आनंद आया । जीवन के व्यापार में से थोड़ा समय निकालकर सत्संग में आना चाहिए ।
मातृ-पितृ पूजन दिवस
हमारी संस्कृति कहती है मातृदेवो भव । पितृदेवो भव । लेकिन देश में बढ़ते जा रहे वृद्धाश्रमों की संख्या को एवं वेलेंटाइन डे द्वारा देश-विदेश में युवाओं के चारित्रिक पतन की ओर बढ़ रहे कदमों को रोककर उन्हें उन्नति की ओर ले जानेवाले संयम-सदाचार, विकाररहित शुद्ध प्रेम के मार्ग पर ले जाने के लिए संत श्री आशारामजी बापू ने सन् 2007 में एक नये त्यौहार 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस का शंखनाद किया, जिसकी गूंज से समूचा विश्व लाभान्वित हो रहा है । बापूजी की इस क्रांतिकारी पहल को सभी धर्म-मत-पंथ-सम्प्रदायों ने सराहा और आदरसहित अपनाया ।
प्रशस्ति-पत्र
सम्पूर्ण विश्व मांगल्य की भावना से द्रवित बापूजी का नवनीत सम हृदय मानव-समाज के लिए वरदानरूप रहा है । बापूजी ने जो समाज के लिए किया, उसका ऋण समाज कभी चुका नहीं पायेगा । समस्त मानवजाति के कल्याणार्थ दिये गये अद्वितीय योगदान के कारण संत श्री आशारामजी आश्रम को कई गणमान्य हस्तियों द्वारा प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया है ।
भलाई जो की बापूजी ने, कुप्रचारक कर सकेंगे क्या ?
संत आशारामजी बापू के साथ संत-मिलन
क्या ऐसे पुलिस अधिकारी विश्वास योग्य हैं ?
इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर चंचल मिश्रा
आशारामजी बापू के केस की जाँच अधिकारी चंचल मिश्रा थी । जिनकी कार्यशैली और जिस तरह से कोर्ट में कार्यवाही हुई उससे I.O. (चंचल मिश्रा) की भूमिका भी संदेहों के घेरे में आ जाती है । जैसे :
1. इस पूरे केस का एक मुख्य सबूत घटनास्थल की फोरेंसिक जाँच (लड़की की कुटिया में उपस्थिति होने या न होने का पुख्ता सबूत) था जो I.O. द्वारा नहीं करवायी गयी ।
2. I.O. द्वारा लड़की से संबंधित (12 से 17 अगस्त 2013 अर्थात्  तथाकथित घटना के बीच के दिनों की ) कॉल डिटेल्स को कोर्ट से छुपाया गया ।
3. लड़की की FIR लिखते समय की गयी विडियोग्राफी को मिटा दिया गया ।
4. लड़की के बयान की विडियोग्राफी के सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गयी । (विस्तृत जानकारी के लिए पेज नं 12-15 पढ़ें)
ए एस पी चंचल मिश्रा को राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना ने एक अन्य केस से बर्खास्त करने की माँग की है ।
यह वही ऑफिसर है जिसके लिए (NDPS Act, Case No. - 44/2012) सीकर, राजस्थान न्यायालय का फैसला आया है कि “चंचल मिश्रा अकर्मण्य ऑफिसर है, यह ट्रुथफुल ऑफिसर नहीं है और ऐसे ऑफिसर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाय ।”
ऐसे ऑफिसर की नियुक्ति की जाती है संत श्री आशारामजी बापू के केस में और बापूजी को आजीवन कारावास की सजा होने के बाद इस ऑफिसर को लेडी सिंघम की उपाधि दी जाती है ।
इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर अजय पाल लाम्बा
तत्कालीन DCP अजय पाल लाम्बा आशारामजी बापू एवं केस के संदर्भ में लिखी हुई अपनी किताब को दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे एक केस में सत्य घटनाओं का संकलन बताता है और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे दूसरे केस में काल्पनिक (ड्रामेटिकल) बताता है और आश्चर्य ! ये दोनों कोर्ट्स उसके बयानों को कंसीडर करते हैं और आशारामजी बापू के पक्ष की अर्जी को खारिज कर देते हैं । इतना ही नहीं, ऐसे अविश्वनीय ऑफिसर को संत श्री आशारामजी बापू को सजा होने के बाद सरकार द्वारा पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है । (विस्तृत जानकारी के लिए पेज नं 17 पढ़ें)
क्या ये विश्वास करने योग्य है ?
मीडिया की भूमिका
आशारामजी बापू के केस में समाज को भ्रमित करने में मीडिया ने अहम भूमिका निभायी । 2013 में जब बापूजी पर अनर्गल आरोप लगे तब देश में चल रहे सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों से दरकिनार कर फॉरेन फंडेड मीडिया ने 24 घंटे डिबेट व मीडिया ट्रायल द्वारा बापूजी की छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया ।
बापूजी को बदनाम करने के लिए मीडिया ने एक नाबालिग बच्ची को भी नहीं बक्शा । गुरुग्राम की एक बच्ची के विडियो को तोड़-मरोड़कर अश्लील तरीके से समाज के सामने परोसा । इस कारण दीपक चौरसिया, चित्रा त्रिपाठी, अजीत अंजुम समेत 8 लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी (आपराधिक साजिश), 469, 471 (जालसाजी), सूचना एवं प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67बी (बच्चे को ऑनलाइन उत्पीड़ित करना) एवं 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करना) और पॉक्सो एक्ट की धारा 23 (मीडिया द्वारा पीड़ित बच्चे की पहचान जाहिर करना) एवं 13सी  (अश्लील प्रयोजनों के लिए बच्चों का उपयोग करने) के तहत मामला दर्ज किया गया है और वर्तमान में विभिन्न धाराओं के साथ पॉक्सो 14 (1) अश्लील प्रयोजनों के लिए नाबालिग बच्चों का उपयोग करने हेतु दंड) के तहत न्यायालय ने प्रथम दृष्ट्या अपराधी माना है।
आश्रम पर आरोप लगाने वाले भोलानंद ने बाद में जाहिर में माफ़ी मांगी व बताया कि मीडिया वाले उसे रुपये, बंगले, गाड़ी आदि का लालच देकर आशारामजी बापू के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर किया करते थे ।
क्या ऐसी मीडिया पर भरोसा करेंगे आप ?
15 दिसंबर, 2013 को एक बच्चे के रिश्तेदार की शिकायत के बाद एक एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें तीन समाचार चैनलों - न्यूज 24, इंडिया न्यूज और न्यूज नेशन पर "मॉर्फ्ड" वीडियो प्रसारित करने का आरोप लगाया गया था। 10 साल की बच्ची और उसके परिवार का एक "संपादित", "अश्लील" वीडियो संत आसाराम बापू के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले से जोड़कर प्रसारित किया गया था। 2020 और 2021 में चार्जशीट दाखिल की गई ।
संदर्भ लिंक्स
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